आप को सिर्फ सोचा,और हमे इस ज़िंदगी से प्यार हो गया...दिल की धड़कनो की आवाज़ सुनी और
यह दिल ना जाने कब आप के करीब हो गया...पलकों के शामियाने मे कब कैसे आप को बसा लिया..
रातो पे आप का कब और क्यों पहरा हो गया...खुद को आईने मे निहारा,खुद ही को खुद ने पहचानने
से इंकार कर दिया....सोचा सिर्फ आप को,और अपनी ज़िंदगी से बरबस प्यार हो गया...
यह दिल ना जाने कब आप के करीब हो गया...पलकों के शामियाने मे कब कैसे आप को बसा लिया..
रातो पे आप का कब और क्यों पहरा हो गया...खुद को आईने मे निहारा,खुद ही को खुद ने पहचानने
से इंकार कर दिया....सोचा सिर्फ आप को,और अपनी ज़िंदगी से बरबस प्यार हो गया...