फिर से क्यों अजनबी हो गए,बहुत पास आते आते....दिलो के फैसले क्यों बढ़ गए,नज़दीकियों के
चलते चलते....सकून इन्ही दिलो का चुरा लिया करती है,बुझती ख़ामोशीया...हम चुप रहे वोह भी
चुप रहे,फासले अपनी जगह बनाते गए....इमारते टूटती रही,मलबे के ढेर मे नायाब रिश्ते दफ़न
होते चले गए...गुजारिश ना वो कर सके और हम यक़ीनन अपने कामो मे उलझे तो फिर उलझते
चले गए...
चलते चलते....सकून इन्ही दिलो का चुरा लिया करती है,बुझती ख़ामोशीया...हम चुप रहे वोह भी
चुप रहे,फासले अपनी जगह बनाते गए....इमारते टूटती रही,मलबे के ढेर मे नायाब रिश्ते दफ़न
होते चले गए...गुजारिश ना वो कर सके और हम यक़ीनन अपने कामो मे उलझे तो फिर उलझते
चले गए...