Thursday 12 July 2018

वो हमारे कदमो मे फूल बिछाते रहे...हमारी पसंद नापसंद की बेइंतिहा फ़िक्र करते रहे...हमारी ख़ुशी

का हिसाब पाने के लिए दौलत के लिए मेहनतकश होते रहे...आंसू एक भी छलका,तो वो बस घबरा

गए... खुशियाँ गर मोहताज़ पैसो से होती,तो प्यार का मोल भला कहा होता...खुशियाँ गर सोने के

सिक्को से मिली होती तो हर अमीर ख़ुशनसीब ही होता...तेरी बाहों के घेरे मे,तुझे खुद के हाथो से

ख़िलाने मे..जो प्यार का दरिया मैंने पाया,वो कहा मिल पाए गा इन फूलो और दौलत के ख़ज़ानों मे ..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...