जरूरतों की नगरी .... यह जरुरतो के शहर....कुछ भी नहीं मिला ऐसा जो दे सके सकूने -दिल का
वो महका सा सफर...कही था दौलत का नशा तो कही था जिस्मो की जरूरतों का वो बदला बदला
एक ज़हरीला सा नशा....मासूम हसी की तलाश मे कितनी दूर निकल आए... लोगो की नज़रो मे
ईमान ढूंढ़ने को तरस तरस गए....पूरे जहाँ को देखने की ताकत ही नहीं,डर लगता है कही ज़िंदगी का
और बुरा रूप नज़र ना आ जाए....
वो महका सा सफर...कही था दौलत का नशा तो कही था जिस्मो की जरूरतों का वो बदला बदला
एक ज़हरीला सा नशा....मासूम हसी की तलाश मे कितनी दूर निकल आए... लोगो की नज़रो मे
ईमान ढूंढ़ने को तरस तरस गए....पूरे जहाँ को देखने की ताकत ही नहीं,डर लगता है कही ज़िंदगी का
और बुरा रूप नज़र ना आ जाए....