Tuesday 10 July 2018

जरूरतों की नगरी .... यह जरुरतो के शहर....कुछ भी नहीं मिला ऐसा जो दे सके सकूने -दिल का

वो महका सा सफर...कही था दौलत का नशा तो कही था जिस्मो की जरूरतों का वो बदला बदला

एक ज़हरीला सा नशा....मासूम हसी की तलाश मे कितनी दूर निकल आए... लोगो की नज़रो मे

ईमान ढूंढ़ने को तरस तरस गए....पूरे जहाँ को देखने की ताकत ही नहीं,डर लगता है कही ज़िंदगी का

और बुरा रूप नज़र ना आ जाए....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...