Monday 9 July 2018

रास्तो मे धूल जमती रही और हम साफ़ करते रहे....लफ्ज़ो के चलते चलते,ज़िंदगी का रुख बदलते

रहे....इंतज़ार था उस सावन का,जो बरसे इतना कि यह रास्ते फिर से निखर जाए....हाथ जोड़ कर

उस मालिक से दुआ पे दुआ करते रहे...कितने ही सावन आए और चले गए,शायद धूल थी इतनी

गहरी कि सावन भी उन को सवार नहीं पाए...थक कर छोड़ा तमाम रास्तो को और खुली हवा मे सांस

लेने चले आए....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...