Wednesday 11 July 2018

दरख़्त की छाँव मे बैठे कि हवा का इक झोका करीब से मेरे निकल गया...क्या कह गया,क्या बता

गया...इसी उलझन मे जो उलझे  तो दुबारा इक इशारा फिर से दे गया....इस बार का यह झोका दिल

के तारो को क्यों झकझोड़ गया....किस्मत की लकीरो मे जो उस ने लिखा,मै और तुम क्या बदले गे..

खुली हवाओ ने जो सन्देश दिया,अब तो हर सांस को बस ख़ुशी ख़ुशी ही जी ले गे ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...