दरख़्त की छाँव मे बैठे कि हवा का इक झोका करीब से मेरे निकल गया...क्या कह गया,क्या बता
गया...इसी उलझन मे जो उलझे तो दुबारा इक इशारा फिर से दे गया....इस बार का यह झोका दिल
के तारो को क्यों झकझोड़ गया....किस्मत की लकीरो मे जो उस ने लिखा,मै और तुम क्या बदले गे..
खुली हवाओ ने जो सन्देश दिया,अब तो हर सांस को बस ख़ुशी ख़ुशी ही जी ले गे ...
गया...इसी उलझन मे जो उलझे तो दुबारा इक इशारा फिर से दे गया....इस बार का यह झोका दिल
के तारो को क्यों झकझोड़ गया....किस्मत की लकीरो मे जो उस ने लिखा,मै और तुम क्या बदले गे..
खुली हवाओ ने जो सन्देश दिया,अब तो हर सांस को बस ख़ुशी ख़ुशी ही जी ले गे ...