Monday 2 July 2018

बरसा तो बरसा आज सावन इतना कि दिल का दर्द हवा हो गया...तूफानी बौछारों से किन्ही यादो से

मन गुदगुदा गया...जी चाहा आज भी उतना ही भीग जाए इस मौसम मे,बरसो पहले भीगते थे जैसे

लड़कपन मे...सिर्फ एहसास था छोटी छोटी बातो का,झगड़ा था कागज़ की बनी उस नौका का...लौट

कर वो वक़्त कब आता है,मगर यह सावन हमेशा याद वही सब दिला जाता है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...