यह राते क्यों दस्तक देती है आज भी तेरी उन नरम गुफ्तगू की आगाज़ का...क्या सुन लिया मैंने
जो नज़ारा बन गया किसी शाही आफताब के रुख्सार का....दर्द की चादर मे अक्सर इक हंसी होती
है तेरे रूहानी लिबास की ....कहते है चाँद से तेरे चेहरे को याद कर आज भी नज़र हटती नहीं उस
सुर्ख जोड़े के मखमली अंदाज़ से...बिखर कर टूट कर,समा जाऊ तुझ मे,किसी शबनबी ओस की
पहली मुबारक सुबह की रौनकी अंदाज़ सी ....
जो नज़ारा बन गया किसी शाही आफताब के रुख्सार का....दर्द की चादर मे अक्सर इक हंसी होती
है तेरे रूहानी लिबास की ....कहते है चाँद से तेरे चेहरे को याद कर आज भी नज़र हटती नहीं उस
सुर्ख जोड़े के मखमली अंदाज़ से...बिखर कर टूट कर,समा जाऊ तुझ मे,किसी शबनबी ओस की
पहली मुबारक सुबह की रौनकी अंदाज़ सी ....