Tuesday 24 July 2018

वक़्त के धागो मे बहुत बार मोम की तरह पिघलते  रहे....कभी जल गया सीना तो कभी रास्तें भी

पिछड़ गए...उसी तपती लो मे कुछ बह गया तो कभी कुछ रह गया...फिर मिला धागा ऐसा जो जलने

से इंकार कर गया...अब जली मोम की खूबसूरत रौशनी...जिस को देखा जब भी,रौशन सवेरा हो गया 

अब ना तो खौफ जलने का है ना रास्तो की बदहाली का...जीते जीते जी उठे,किया सलाम इस कदर

ज़िंदगी को,कि धागा तो धागा अब तो मोम भी सरे आम रौशनी देने पे आमादा हो गया....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...