कही उलझन कही टूटन..कही वो बॅधन बिखरे से----वो छूती सी तपन..वो बहकी सी
अगन..थकतेे से पाॅव बालू पे--- सूरज की तपिश सा यह जलता तन...बरफीली हवाओ
के आॅगन मे---इॅनतजार है अब किस का..मुहबबत का या लॅबी जुुदाई का---पसरा है यह
सननाटा जलती लौ के चिलमन सा..जिए कैसे यह दीपक अब कि सवेरा दसतक देेेने
को है---
अगन..थकतेे से पाॅव बालू पे--- सूरज की तपिश सा यह जलता तन...बरफीली हवाओ
के आॅगन मे---इॅनतजार है अब किस का..मुहबबत का या लॅबी जुुदाई का---पसरा है यह
सननाटा जलती लौ के चिलमन सा..जिए कैसे यह दीपक अब कि सवेरा दसतक देेेने
को है---