Monday 15 February 2016

दरद की इनितहाॅ जब होती है..तो रो लेते है--वजह कुछ भी नही..फिर भी खुुद को ही

सजा देेते है---आॅसू से भरी यह आॅखे देखे ना कोई..बेवजह कुछ जयादा ही मुसकुरातेे है-

--जिन से यह दरद मिले..उन के नाम बताते हुए भी कतराते है--उममीद केे दामन को

अब दफन कर के..अपनी ही दुनिया मे इक उममीद की लौ खुद ही जला लेते है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...