ऐ हवा जऱा धीरे चल..मेरी जुलफो को ना उडा..महबूब मेरा छू चुका है इनहे अब..मेरी
आॅखो को ऐ सूरज इतना ना जला..कि डूब चुका है वो इन की मदहोशी मे..मेरे जिसम मेे
ना दरद जगा..कि जागीर का मालिक मेरा साजन है अब...जा चाॅद अब तू छुप जा घने
बादल मे..कि मधुर मिलन की बेला मे तू कही नही अब मेरे साथ...
आॅखो को ऐ सूरज इतना ना जला..कि डूब चुका है वो इन की मदहोशी मे..मेरे जिसम मेे
ना दरद जगा..कि जागीर का मालिक मेरा साजन है अब...जा चाॅद अब तू छुप जा घने
बादल मे..कि मधुर मिलन की बेला मे तू कही नही अब मेरे साथ...