Sunday 7 February 2016

गुजर रहे है जिस तनहाई से हम..तेरे उस साथ की याद आती है--वो लमहे.वो तेरी

गुफतगू...बाहो मे तेरी सो जाना--वो सकून की राते..वो तेरा हौले से बुलाना..मदहोशी के

आलम मे मेरी पायल को बजा देना--चूडियो को खनका कर..मुझे रातो को जगा देना--

पायल तो आज भी है..चूडिया भी है..पर उन को सजाने के लिए तूूू पास नही है--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...