Tuesday 7 August 2018

कहाँ कहाँ ढूंढा तुझ को,पर तेरी कोई खबर ही नहीं...थक रहे है चलते चलते,खुद की कोई होश ही नहीं..

शहर शहर और गली गली,हर दरवाजे पे दस्तक दी...कहाँ होगा तेरा ठिकाना,अब तो खुद पे जोर नहीं..

पावों के छालों ने लिख दी सड़क सड़क तेरी मेरी कहानी...हर दीवार पे लिखते जा रहे है तेरे नाम की

छोटी छोटी निशानी...शायद...शायद कभी इन्ही राहों से भूले से कभी तू गुजरे,हर सड़क पे लिखी तू

देखे तेरी मेरी वही कहानी....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...