मेहरबाँ मेरे--दे दे जुबान अब तो मुहब्बत को अपनी कि ज़िंदगी के दिन बहुत कम रह गए है--ताउम्र
इंतज़ार करते रहे,अब तो कह दे कि बस तेरे लिए ही जी रहे है हम--मौसम बहारों के बेशुमार निकल
गए इसी आस मे कि यह इंतज़ार अब ख़तम हो जाए गा--बीते साल दर साल,पर तेरी कशिश मे कमी
आज भी ना आई है---सिलवटे चेहरे पे पड़ी तो क्या हुआ,तेरी पाक मुहब्बत का ख्याल अब तक दिल से
गया ही नहीं--मुहब्बत की पाकीज़गी जिस्मो से नहीं हुआ करती,यह वो शै है जो सीधे रूह मे उतर जाया
करती है---
इंतज़ार करते रहे,अब तो कह दे कि बस तेरे लिए ही जी रहे है हम--मौसम बहारों के बेशुमार निकल
गए इसी आस मे कि यह इंतज़ार अब ख़तम हो जाए गा--बीते साल दर साल,पर तेरी कशिश मे कमी
आज भी ना आई है---सिलवटे चेहरे पे पड़ी तो क्या हुआ,तेरी पाक मुहब्बत का ख्याल अब तक दिल से
गया ही नहीं--मुहब्बत की पाकीज़गी जिस्मो से नहीं हुआ करती,यह वो शै है जो सीधे रूह मे उतर जाया
करती है---