Saturday 18 August 2018

मेहरबाँ मेरे--दे दे जुबान अब तो मुहब्बत को अपनी कि ज़िंदगी के दिन बहुत कम रह गए है--ताउम्र

इंतज़ार करते रहे,अब तो कह दे कि बस तेरे लिए ही जी रहे है हम--मौसम बहारों के बेशुमार निकल

गए इसी आस मे कि यह इंतज़ार अब ख़तम हो जाए गा--बीते साल दर साल,पर तेरी कशिश मे कमी

आज भी ना आई है---सिलवटे चेहरे पे पड़ी तो क्या हुआ,तेरी पाक मुहब्बत का ख्याल अब तक दिल से

गया ही नहीं--मुहब्बत की पाकीज़गी जिस्मो से नहीं हुआ करती,यह वो शै है जो सीधे रूह मे उतर जाया

करती है---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...