कुछ कहने के लिए जब यह होंठ खुले,मन की उलझन को बताने के लिए जुबाँ ने जब भी शब्द चुने ..
वक़्त निकल गया तो कुछ भी मुनासिब ना हो पाए गा...यह सोच कर शर्म के दरवाजे तोड़ दिए...
ज़िंदगी बहुत लम्बी है,पर राज़ की चादर बहुत गहरी है...बता कर उन से खुद ही दूर चले जाए गे..
फिर लौट कर उन के दरवाजे पे दस्तक भी ना देने आए गे...प्यार को ना बांध ऊंच-नीच के धागो मे..
दिल जब एक है तो छोड़ दे बेकार के रिवाजो को...झरने की तरह बही सारी उलझन,प्यार ने चुनी
प्यार की दौलत...
वक़्त निकल गया तो कुछ भी मुनासिब ना हो पाए गा...यह सोच कर शर्म के दरवाजे तोड़ दिए...
ज़िंदगी बहुत लम्बी है,पर राज़ की चादर बहुत गहरी है...बता कर उन से खुद ही दूर चले जाए गे..
फिर लौट कर उन के दरवाजे पे दस्तक भी ना देने आए गे...प्यार को ना बांध ऊंच-नीच के धागो मे..
दिल जब एक है तो छोड़ दे बेकार के रिवाजो को...झरने की तरह बही सारी उलझन,प्यार ने चुनी
प्यार की दौलत...