अपने ही दिल मे,अपनी तस्वीर बसाई और खुद से प्यार कर बैठे...चाहा तो फिर खुद को इतना चाहा कि
सारा जहाँ पीछे छोड़ बैठे...कभी सजाया खुद को इतना,कभी संवारा बार बार इतना...आईना आया जो
सामने,छवि अपनी को ही सलाम कर बैठे...खुशामद अपने रूप की,की हम ने,कभी सलामी अपने हुनर
को दी हम ने...अब ज़माना लाख पुकारे लौट के ना आए गे,इतनी शिद्दत से खुद को चाहा है,पूछते है
क्या हमारे लिए,खुद के दस्तूर छोड़ पाओ गे ...
सारा जहाँ पीछे छोड़ बैठे...कभी सजाया खुद को इतना,कभी संवारा बार बार इतना...आईना आया जो
सामने,छवि अपनी को ही सलाम कर बैठे...खुशामद अपने रूप की,की हम ने,कभी सलामी अपने हुनर
को दी हम ने...अब ज़माना लाख पुकारे लौट के ना आए गे,इतनी शिद्दत से खुद को चाहा है,पूछते है
क्या हमारे लिए,खुद के दस्तूर छोड़ पाओ गे ...