किस्मत की लकीरो से बार बार सवाल पूछा हम ने....शिद्दत से जिसे चाहा हम ने,उसी को दूर क्यों
किया हम से....मुहब्बत किसी की बेइंतिहा दे कर,रिश्ते को क्यों तोड़ डाला हम से....ज़ी भर भर जब
हसी मिली खुद से,तो क्यों खुद अपनों को किनारे कर दिया हम से....आंखे जब दर्द को भुला सहज
होने को लगी,क्यों अचानक पलकों को सैलाब मे भिगोया ऐसे....ग़लतिया होती है मगर,कोई गुनाह
ऐसा भी नहीं किया हम ने...जो यूं रुला रुला कर जीते जी मार डाला हम को......
किया हम से....मुहब्बत किसी की बेइंतिहा दे कर,रिश्ते को क्यों तोड़ डाला हम से....ज़ी भर भर जब
हसी मिली खुद से,तो क्यों खुद अपनों को किनारे कर दिया हम से....आंखे जब दर्द को भुला सहज
होने को लगी,क्यों अचानक पलकों को सैलाब मे भिगोया ऐसे....ग़लतिया होती है मगर,कोई गुनाह
ऐसा भी नहीं किया हम ने...जो यूं रुला रुला कर जीते जी मार डाला हम को......