Wednesday 28 March 2018

दिए की लौ मे जो देखा चेहरा उस का मैंने....होश थे गायब,धडकनों को कैसे संभाला मैंने....बिजली

सी गिरी दामन मे मेरे,आँखों की चमक को कैसे छुपाया मैंने....इतने करीब से उसे देखना होगा भी

कभी,अपनी किस्मत पे यकीं नहीं हुआ जैसे....बात करने के लिए जो लब खुले उस के,यूं लगा कमल

के फूलो ने जो अंगड़ाई ली हो जैसे....उस के नाज़ उठाए या कुछ सवाल करे उस से,इसी कशमकश मे

क्यों सारी रात यूं ही गुजार दी मैंने.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...