Thursday, 22 March 2018

बहुत ख़ामोशी से सुपुर्द किया इसी धरा के नाम...और इतिहास समझ सब धीरे धीरे भूल गए....गाहे

बगाहे मौको पे दो आंसू से बस याद किया... लेकिन हम ने चुपके से,उन सभी कमियों को याद किया

और जन्मो का साथ मांग लिया...दिल के दरवाज़े को फिर आहट दी और एक  पन्ने पे तेरा नाम लिखा

 जज्बात भरे उस पर इतने कि हर जर्रा जैसे सहम गया....कभी लिखा दर्द इतना तो कभी मुहब्बत को

अंजाम दिया....ना भूले धरा की धरोहर को,अपनी पलकों मे बस थाम लिया....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...