Sunday 9 April 2017

कही उलझा दामन तो कही बिखरे गेसू -- कही ज़ल्दबाज़ी मे दुपट्टा लिया थाम ---मिलन की घड़िया

आने को है,कितना सजना है सवरना है..होश मे नहीं है मेरे सुबह-शाम--माथे की बिंदिया,हाथो के

कंगन और अब तो बज उठी यह पायल लेते लेते तेरा नाम---रूह का मिलन तो होना ही है,फिर क्यों

यह धड़कन हो रही बेचैन बेचैन--दिन गिने या रातो को करवटें बदले,अब तो इंतज़ार मे है यह रूहे-खास 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...