Monday 17 April 2017

तन्हाईयाँ रास नहीं आई हम को...घुटन ने दबोचा और खामोशिया टकरा गई---तेरी तलाश मे जो

निकले,खुली वादियां मुखातिब हो गई---सिर्फ तेरे अहसास से सांसे खुलने लगी,गेसुओं को जो खोला

घटाएं बरसने लगी---सूखे होठो मे नमी क्यों आने लगी,चेहरा जो छुआ मखमली चादर जैसे बुलाने

लगी---मिलते मिलते आखिर मिल ही जाओ गे,आए है तन्हाइयो को मिटाने के लिए..हुआ ऐसा क्यों

की ज़िन्दगी ज़िन्दगी से बस टकरा गई---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...