Saturday, 29 April 2017

हर बात को कहने के लिए,जरुरी तो नहीं कि लफ्ज़ो मे उसे ढाला जाए---समझो जो इशारो को कभी

फिर बात करने के लिए तुम से मुखातिब क्यों हुआ जाए--गर्म सांसो की नमी को जो सीने मे छुपा लो

तो आगोश मे सिमटने के लिए क्यों कहा जाए---गेसुओं को बिखेरा है चांदनी के उजाले मे ऐसे कि तेरी

बाहो मे आने के लिए अँधेरे का इंतज़ार करना  ही क्यों पड़े---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...