समंदर के पानी की तरह,यह ज़िन्दगी भी बस बहती रही.बहती रही--कभी टकराई काँटों से तो कभी
पत्थरो से चोट खाती रही--संभल संभल कर भी चले तो भी गुनाहो के दाग लगाती रही--मुस्कुराये जो
सब भूल के तो भी दामन को दागदार करती रही..करती रही--बहना ही जब था मंज़िल की तरफ,तो
दागो का हिसाब भूलना ही पड़ा--वाह री ज़िन्दगी,तेरी नादाँ भूलो को नज़रअंदाज़ कर के...आज अपनी
मंज़िल को पाने की खवाइश बस कामयाब होने को लगी..होने को लगी---
पत्थरो से चोट खाती रही--संभल संभल कर भी चले तो भी गुनाहो के दाग लगाती रही--मुस्कुराये जो
सब भूल के तो भी दामन को दागदार करती रही..करती रही--बहना ही जब था मंज़िल की तरफ,तो
दागो का हिसाब भूलना ही पड़ा--वाह री ज़िन्दगी,तेरी नादाँ भूलो को नज़रअंदाज़ कर के...आज अपनी
मंज़िल को पाने की खवाइश बस कामयाब होने को लगी..होने को लगी---