Tuesday 9 January 2018

ना कर गुस्ताखियाँ मेरी मासूम रूह से,यह हर जनम तेरे साथ जीने को मचल जाए गी----तेरी ही रूह

पे कब्ज़ा किए,तेरे जिस्म मे ही मिल जाए गी----अंदाज़ा है तुझे तेरी रूह से कितने करीब से वाकिफ

है-----हवा का रुख बदल जाए,ज़मी आसमां बेशक बदल जाए,एक डोर तुझ से जुड़ी,एक लगन तुझ से

लगी...तार तार होती हुई यह रूह तुझे कही भी ढूंढ पाए गी-----पलकों के आशियाने मे,लबो के सुर्ख

इशारो मे,समझो इशारा आँखों का अभी इसी जनम मे--कि यह रूह तो हर जनम तेरे साथ को मचल

जाए गी------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...