ना कर गुस्ताखियाँ मेरी मासूम रूह से,यह हर जनम तेरे साथ जीने को मचल जाए गी----तेरी ही रूह
पे कब्ज़ा किए,तेरे जिस्म मे ही मिल जाए गी----अंदाज़ा है तुझे तेरी रूह से कितने करीब से वाकिफ
है-----हवा का रुख बदल जाए,ज़मी आसमां बेशक बदल जाए,एक डोर तुझ से जुड़ी,एक लगन तुझ से
लगी...तार तार होती हुई यह रूह तुझे कही भी ढूंढ पाए गी-----पलकों के आशियाने मे,लबो के सुर्ख
इशारो मे,समझो इशारा आँखों का अभी इसी जनम मे--कि यह रूह तो हर जनम तेरे साथ को मचल
जाए गी------
पे कब्ज़ा किए,तेरे जिस्म मे ही मिल जाए गी----अंदाज़ा है तुझे तेरी रूह से कितने करीब से वाकिफ
है-----हवा का रुख बदल जाए,ज़मी आसमां बेशक बदल जाए,एक डोर तुझ से जुड़ी,एक लगन तुझ से
लगी...तार तार होती हुई यह रूह तुझे कही भी ढूंढ पाए गी-----पलकों के आशियाने मे,लबो के सुर्ख
इशारो मे,समझो इशारा आँखों का अभी इसी जनम मे--कि यह रूह तो हर जनम तेरे साथ को मचल
जाए गी------