नज़र का धोखा कहे या परेशानी इस नज़र की----हर ज़र्रे मे अक्स तेरा ही दिखता है----खुद ही खुद
तन्हाई मे अपनी परेशानी पे हॅसते है---गौर से सोचे तो प्यार की इंतिहा लगती है---खुदा की दी कोई
नियामत लगती है----खुद को जब जब देखते है आईने मे,तेरे चेहरे की ही झलक दिखती है ----मौसम
की इस बरसात की हर बूंद मे,पानी मे भी तेरी ही छवि मुस्कुराती लगती है-----
तन्हाई मे अपनी परेशानी पे हॅसते है---गौर से सोचे तो प्यार की इंतिहा लगती है---खुदा की दी कोई
नियामत लगती है----खुद को जब जब देखते है आईने मे,तेरे चेहरे की ही झलक दिखती है ----मौसम
की इस बरसात की हर बूंद मे,पानी मे भी तेरी ही छवि मुस्कुराती लगती है-----