साँसे ही तो ज़िंदगी की कहानी बयां करती है----साँसे ही तो धडकनों की उम्र बताया करती है----चाहत
मे जो रुक रुक के थमने लगे,वो मक़ाम भी साँसे दिया करती है----मेहबूब की बाहों मे जो लावे की तरह
बहने लगे,वो गरम नाज़ुक सी हवा साँसे ही हुआ करती है----आँखों मे जो अंगारे बरसने को हो,वो धुआँ
साँसे ही बिखेरा करती है----एक सीमा से बाहर जब यह चलती रहे,मौत की आहट यक़ीनन यही साँसे
दिया करती है---
मे जो रुक रुक के थमने लगे,वो मक़ाम भी साँसे दिया करती है----मेहबूब की बाहों मे जो लावे की तरह
बहने लगे,वो गरम नाज़ुक सी हवा साँसे ही हुआ करती है----आँखों मे जो अंगारे बरसने को हो,वो धुआँ
साँसे ही बिखेरा करती है----एक सीमा से बाहर जब यह चलती रहे,मौत की आहट यक़ीनन यही साँसे
दिया करती है---