Saturday 27 January 2018

हवाओ का यह कैसा रुख बदला है----दूर दूर तक इन हवाओ मे ना जाने कैसा पहरा है----इतनी ख़ामोशी

है कि हर आहट सुनाई देती है---बगीचे मे भी फूलो मे एक अजीब सी नरमाई है----ओस की बूंदो की तरह

यह फ़िज़ा महकी महकी और शरमाई सी है-----चाँद को छू ले या इन्ही हवाओ मे गुम हो जाए,तुझे ढूंढे

या दुल्हन के लिबास मे तेरा इंतज़ार करे---तेरे आने की सदा है,तभी तो इन हवाओ ने रुख बदला है----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...