जो कभी निखरा ही नहीं वो रूप कैसा...जो कभी पिघला नहीं वो दिल कैसा.. बूँद बून्द से गर सागर ना
भरे वो सागर कैसा... दहलीज़ पे पांव रखे मगर वादा एक भी नहीं निभाया..प्यार का अपमान किया
और रिश्ते को पाक कहां..जुर्म को अपना अभिमान माना,परवरदिगार से फिर भी सब मांग लिया...
इंसानो से हेरा-फेरी की,और रात दिन तिलक माथे पे ईश्वर का लगा लिया...जो बन ना पाया मसीहा
और सारी सल्तनत का हक़दार बना..वो राजा कैसा....
भरे वो सागर कैसा... दहलीज़ पे पांव रखे मगर वादा एक भी नहीं निभाया..प्यार का अपमान किया
और रिश्ते को पाक कहां..जुर्म को अपना अभिमान माना,परवरदिगार से फिर भी सब मांग लिया...
इंसानो से हेरा-फेरी की,और रात दिन तिलक माथे पे ईश्वर का लगा लिया...जो बन ना पाया मसीहा
और सारी सल्तनत का हक़दार बना..वो राजा कैसा....