इंतज़ार का यह सिलसिला,कभी कभी रात भर जगाता भी है...आँखों मे नींद कहाँ,करवटें बदल बदल
क्या क्या सोच लेता है...चूड़ियों की खनक दिल को चुभती है,कानो की बाली भी दुश्मन लगती है...
बहुत कुछ पूछे गे उन से,मगर यह रात गुजरे से भी गुजर ना पाती है...सवेरा कभी होगा भी,यह खलल
पागल करने लगता है...रंजिश क्यों ना करे,कायनात से हाथ जोड़ कर सिर्फ तुझे ही तो माँगा है..
क्या क्या सोच लेता है...चूड़ियों की खनक दिल को चुभती है,कानो की बाली भी दुश्मन लगती है...
बहुत कुछ पूछे गे उन से,मगर यह रात गुजरे से भी गुजर ना पाती है...सवेरा कभी होगा भी,यह खलल
पागल करने लगता है...रंजिश क्यों ना करे,कायनात से हाथ जोड़ कर सिर्फ तुझे ही तो माँगा है..