Friday 9 August 2019

इंतज़ार का यह सिलसिला,कभी कभी रात भर जगाता भी है...आँखों मे नींद कहाँ,करवटें बदल बदल

क्या क्या सोच लेता है...चूड़ियों की खनक दिल को चुभती है,कानो की बाली भी दुश्मन लगती है...

बहुत कुछ पूछे गे उन से,मगर यह रात गुजरे से भी गुजर ना पाती है...सवेरा कभी होगा भी,यह खलल

पागल करने लगता है...रंजिश क्यों ना करे,कायनात से हाथ जोड़ कर सिर्फ तुझे ही तो माँगा है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...