Friday 9 August 2019

बारिश मे जो भीगी चुनरिया तो आँचल ने साथ छोड़ दिया...भीगे जो गेसू ,घबरा कर बादलों ने साजन

को इशारा किया..तेज़ हवा उड़ा ले गई दुपट्टा मलमल का...क्या हुआ ऐसा बार बार बारिश मे भीग जाने

का मन हो गया...चंचल से यह नैना क्यों गुस्ताखी पे उतर आए है..इंतज़ार है अपने उस साजन का,जो

हमे भीगा देखने के लिए बरखा को संदेशा दे आए है...बरखा तो बरखा है,पर साजन हम तो तेरे लिए यू

 ही सदा कुर्बान होते आए है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...