बारिश मे जो भीगी चुनरिया तो आँचल ने साथ छोड़ दिया...भीगे जो गेसू ,घबरा कर बादलों ने साजन
को इशारा किया..तेज़ हवा उड़ा ले गई दुपट्टा मलमल का...क्या हुआ ऐसा बार बार बारिश मे भीग जाने
का मन हो गया...चंचल से यह नैना क्यों गुस्ताखी पे उतर आए है..इंतज़ार है अपने उस साजन का,जो
हमे भीगा देखने के लिए बरखा को संदेशा दे आए है...बरखा तो बरखा है,पर साजन हम तो तेरे लिए यू
ही सदा कुर्बान होते आए है...
को इशारा किया..तेज़ हवा उड़ा ले गई दुपट्टा मलमल का...क्या हुआ ऐसा बार बार बारिश मे भीग जाने
का मन हो गया...चंचल से यह नैना क्यों गुस्ताखी पे उतर आए है..इंतज़ार है अपने उस साजन का,जो
हमे भीगा देखने के लिए बरखा को संदेशा दे आए है...बरखा तो बरखा है,पर साजन हम तो तेरे लिए यू
ही सदा कुर्बान होते आए है...