Friday 9 August 2019

दीवानगी की हद से परे भी मुहब्बत होती है...कौन कहता है यह मुहब्बत झूठी भी होती है...सच को

गर बार बार छुपाया जाये तो यक़ीनन मुहब्बत बर्बादे-निशाँ होती है...रूहे-ज़मीर साफ़ रहे तो गलतियां 

माफ़ भी होती है...जिस्म के प्यार को कभी रूहे-मुहब्बत नहीं कहते...जो जुड़ा है रूहे-पाक से,वह जिस्म

को मुहब्बत से जोड़ा नहीं करते...जिस्म तो आखिर फ़ना हो ही जाते है..यह रूहे ही है जो सदियों  बाद भी

अपनी रूह को ढूंढ लिया करती है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...