बादलों की ओट से चाँद फिर निकला...चांदनी उदास है यह जान कर चाँद खुद भी उदास है...अक्सर
ऐसा क्यों होता है चांदनी बिन चाँद क्यों अधूरा होता है...चांदनी इंतज़ार सदियों तक करती है,कभी
घिर जाते है बादल तो कभी बरसात भारी हो जाती है..तूफ़ान कितने क्यों ना आए तागीद हर बार वो
यही करती है,तेरी ख़ामोशी रूह को हिला देती है..समर्पण से पहले ही तेरी ख़ामोशी मुझे मार देती है..
जब जीना है साथ सदियों तक,खामोशियाँ किसी दरिया मे फैक दे..हाथ जोड़े तेरे आगे अब हर रस्म बदल दे ...
ऐसा क्यों होता है चांदनी बिन चाँद क्यों अधूरा होता है...चांदनी इंतज़ार सदियों तक करती है,कभी
घिर जाते है बादल तो कभी बरसात भारी हो जाती है..तूफ़ान कितने क्यों ना आए तागीद हर बार वो
यही करती है,तेरी ख़ामोशी रूह को हिला देती है..समर्पण से पहले ही तेरी ख़ामोशी मुझे मार देती है..
जब जीना है साथ सदियों तक,खामोशियाँ किसी दरिया मे फैक दे..हाथ जोड़े तेरे आगे अब हर रस्म बदल दे ...