बरसात का यह पानी..भरा है हर जगह,हर तरफ..ढूंढ रहे है इस मे,कही दिख जाए साफ़ पानी की झलक..
हर मुमकिन कोशिश है उस पानी से हाथ खुद के धुल जाए...मशक्कत जितनी कर रहे है,हर बार ही करते
है..साफ़ पानी की खोज मे खुद को बेहद कष्ट भी देते है...यह दुनिया भी यारो ऐसी ही है..जितनी साफ़
खुद को दिखाती है,उतनी ही अंदर से मैली होती है..लौट के फिर कभी इस दुनिया मे ना आना चाहे गे..
काश..कांच की तरह साफ़ मन सब का होता और हम फूलो की तरह ओस की बूंदो से नहा लेते..
हर मुमकिन कोशिश है उस पानी से हाथ खुद के धुल जाए...मशक्कत जितनी कर रहे है,हर बार ही करते
है..साफ़ पानी की खोज मे खुद को बेहद कष्ट भी देते है...यह दुनिया भी यारो ऐसी ही है..जितनी साफ़
खुद को दिखाती है,उतनी ही अंदर से मैली होती है..लौट के फिर कभी इस दुनिया मे ना आना चाहे गे..
काश..कांच की तरह साफ़ मन सब का होता और हम फूलो की तरह ओस की बूंदो से नहा लेते..