बहुत आहिस्ता से,बहुत धीमे से...कुछ उस ने कहा...मुनासिब तो नहीं तेरे संग जीना..पर मुमकिन
तो है तेरी बातो मे घिरे रहना...नरम होठो से कुछ अल्फ़ाज़ मुहब्बत के कहना और फिर खुद ही खुद
मे सिमट जाना....पलकों की चिलमन मे हज़ारो बातो को छुपा लेना..कभी यूं ही शरमा के मेरी गिरफ्त
से खुद को जुदा करना..कच्ची उम्र का यह खूबसूरत मोड़ है कैसा,जहा बहुत धीमे से जो उस ने कहा
मेरे इस नन्हे से दिल ने उस नगीने को वफ़ा का नाम दिया...
तो है तेरी बातो मे घिरे रहना...नरम होठो से कुछ अल्फ़ाज़ मुहब्बत के कहना और फिर खुद ही खुद
मे सिमट जाना....पलकों की चिलमन मे हज़ारो बातो को छुपा लेना..कभी यूं ही शरमा के मेरी गिरफ्त
से खुद को जुदा करना..कच्ची उम्र का यह खूबसूरत मोड़ है कैसा,जहा बहुत धीमे से जो उस ने कहा
मेरे इस नन्हे से दिल ने उस नगीने को वफ़ा का नाम दिया...