जिस को देखने के लिए यह निगाह आज भी तरसे,जिस के साथ जीने के लिए ज़िंदगी आज भी मचले
जनम देने वाली वो मूरत,घर आंगन मे बसी इक और माँ की सूरत...फर्क दोनों मे कुछ नहीं रहा...
जिस को नमन किया वो भी माँ है,जिस के साथ कुछ साथ जिया...वो भी तो माँ है ...माँ सिर्फ माँ है
शब्दों का कोई खेल नहीं...माँ को समझने के लिए किताबो का ज्ञान जरुरी भी नहीं...जो छोटी सी ख़ुशी
मे दुआ दे जाए,जो आंसू भी मिले तो भी ज़न्नत बरसा जाए...दुआ का सागर सिर्फ माँ ही होती है,दर्द
से भरी भी हो, तो भी रूह अपनी से औलादो के लिए भगवान् से भी भिड़ जाती है...माँ....तुझे प्रणाम.....
जनम देने वाली वो मूरत,घर आंगन मे बसी इक और माँ की सूरत...फर्क दोनों मे कुछ नहीं रहा...
जिस को नमन किया वो भी माँ है,जिस के साथ कुछ साथ जिया...वो भी तो माँ है ...माँ सिर्फ माँ है
शब्दों का कोई खेल नहीं...माँ को समझने के लिए किताबो का ज्ञान जरुरी भी नहीं...जो छोटी सी ख़ुशी
मे दुआ दे जाए,जो आंसू भी मिले तो भी ज़न्नत बरसा जाए...दुआ का सागर सिर्फ माँ ही होती है,दर्द
से भरी भी हो, तो भी रूह अपनी से औलादो के लिए भगवान् से भी भिड़ जाती है...माँ....तुझे प्रणाम.....