पलके जो भीगी तो बस भीगती चली गई...एक अनजान रास्ते पे चलते चलते,यह पाँव लहू-लुहान
होते चले गए....खुद को कोसा तो इतना कोसा कि पाँव के छालों को नज़र अंदाज़ करते चले गए ....
क्यों नहीं तेरा साथ देने के लिए,तेरे हमकदम ना हो सके....क्यों नहीं वादों को निभाने के लिए,तेरे
इशारे ना समझ सके...दम भरते है तेरी मुहब्बत का लेकिन,क्यों इन खुली आँखों से तेरी सूरत भी
ना पढ़ सके...ज़ार ज़ार रोती है यह आंखे मगर,तेरी तलाश मे भटके तो आज तक भटकते ही चले गए
होते चले गए....खुद को कोसा तो इतना कोसा कि पाँव के छालों को नज़र अंदाज़ करते चले गए ....
क्यों नहीं तेरा साथ देने के लिए,तेरे हमकदम ना हो सके....क्यों नहीं वादों को निभाने के लिए,तेरे
इशारे ना समझ सके...दम भरते है तेरी मुहब्बत का लेकिन,क्यों इन खुली आँखों से तेरी सूरत भी
ना पढ़ सके...ज़ार ज़ार रोती है यह आंखे मगर,तेरी तलाश मे भटके तो आज तक भटकते ही चले गए