मौसम की तरह जो बदलना होता तो कोई वादा ना करते....यह जो सुबह आई है,उस की बदौलत
अपनी नाकामयाबियों का खुले - आम तुझ से कभी इज़हार भी ना करते....मुहब्बत जो दबे पांव
दस्तक दे जाती है,जब तक समझ आती है तब तल्क़ खुद को सपुर्दे यार कर जाती है....खुद को खुद
से बेगाना करने के लिए कभी कभी अपने ही दिल के आर पार हो जाती है.....यह कौन सी शै है,जो
शीशे की तरह दिल मे उतरती तो है,पर ज़िंदगी को अपने आप से बस जुदा ही कर जाती है....
अपनी नाकामयाबियों का खुले - आम तुझ से कभी इज़हार भी ना करते....मुहब्बत जो दबे पांव
दस्तक दे जाती है,जब तक समझ आती है तब तल्क़ खुद को सपुर्दे यार कर जाती है....खुद को खुद
से बेगाना करने के लिए कभी कभी अपने ही दिल के आर पार हो जाती है.....यह कौन सी शै है,जो
शीशे की तरह दिल मे उतरती तो है,पर ज़िंदगी को अपने आप से बस जुदा ही कर जाती है....