Sunday 29 April 2018

इन पन्नो पे कितना लिखा मैंने कि हिसाब अब खुद के पास भी नहीं...कभी चुराए ख़ुशी के लम्हे

कभी दर्द को दिल से थाम लिया...हॅसते हॅसते हज़ारो बार यह नैना मेरे छलक गए,कभी अधूरी आस

लिए यह पलकों को बस भिगो गए....जनून लफ्ज़ो का कैसा है कि रात दर रात कलम चलाते ही रहे

कभी लिखा कही कुछ ऐसा कि बंद दरवाजे भी काँप गए...लिखना है कब तक,नहीं जानती  वक़्त की

धार,एक पन्ना बचा कर रखा है खास......जहा होगा सिर्फ मेरा आखिरी पैगाम .....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...