Sunday 1 October 2017

तेरी मुहब्बत की कशिश जो कम होगी,तेरी वफाओ की गिनती जो मुनासिब होगी----तेरे किए एहसानो

को जो कभी ज़मीर की तख्ती पे लिख पाए गे,तभी तो आस पास के नज़ारों पे नज़र उठा पाए गे----हाथ

जब भी उठाते है दुआओ के लिए,मन्नत मे तुझे ही मांगते है अपनी तक़दीर की रोशनाई के लिए---वो तो

तुम हो,जिस ने पलकों पे हम को बिठाया है---चांदनी की शीतल छाया मे हमारे हुस्न को निहारा है----हां

इस ज़मीर की तख्ती को मुकम्मल कर पाए,तभी तो एक और जन्म ले पाए गे -------

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...