तेरी मुहब्बत की कशिश जो कम होगी,तेरी वफाओ की गिनती जो मुनासिब होगी----तेरे किए एहसानो
को जो कभी ज़मीर की तख्ती पे लिख पाए गे,तभी तो आस पास के नज़ारों पे नज़र उठा पाए गे----हाथ
जब भी उठाते है दुआओ के लिए,मन्नत मे तुझे ही मांगते है अपनी तक़दीर की रोशनाई के लिए---वो तो
तुम हो,जिस ने पलकों पे हम को बिठाया है---चांदनी की शीतल छाया मे हमारे हुस्न को निहारा है----हां
इस ज़मीर की तख्ती को मुकम्मल कर पाए,तभी तो एक और जन्म ले पाए गे -------
को जो कभी ज़मीर की तख्ती पे लिख पाए गे,तभी तो आस पास के नज़ारों पे नज़र उठा पाए गे----हाथ
जब भी उठाते है दुआओ के लिए,मन्नत मे तुझे ही मांगते है अपनी तक़दीर की रोशनाई के लिए---वो तो
तुम हो,जिस ने पलकों पे हम को बिठाया है---चांदनी की शीतल छाया मे हमारे हुस्न को निहारा है----हां
इस ज़मीर की तख्ती को मुकम्मल कर पाए,तभी तो एक और जन्म ले पाए गे -------