Monday 16 October 2017

दोस्तों...हमारी हिन्दू संस्कृति मे त्योहारो का बहुत महत्व है..दीपावली राम जी के आगमन की ख़ुशी के लिए मनाई जाती है...क्या अब इन त्योहारो के मायने सच मे हमारी संस्कृति या भगवान के नियमो के अनुसार होते है..कदापि नहीं...अब यह त्योहार रुतबे और दौलत को मद्देनज़र रख कर निभाए जाते है...तोहफे भी दिए जाते है तो दूसरे इंसान के रुतबे के हिसाब से कि जो हम दे गे उस के बदले मे वो कितना लौटाए गा...लोग खूब खरीददारी कर रहे है,खुद को दुसरो से बेहतर जताने के लिए पैसो को बहाया जा रहा है....उस मे कही भी संस्कारो की छाप नज़र नहीं आती..आप दुकान पे है और एक गरीब भूखा इंसान गिड़गिड़ा कर आप से कह रहा है कि कुछ खिला दो..हम मे से कितने लोग होंगे जो उस गरीब को भरपेट बढ़िया सा खाना खिलाये गे ??या सम्मान से उस को पैसे ही दे दे गे ? दोस्तों..मेरी नज़र मे उस गरीब को भरपेट खाना खिलाना ही त्योहार मानना है..बजाय इस के कि उन लोगो को तोहफे बाटे जाये जहा सिर्फ और सिर्फ दिखवा भरा है..झूटी हसी मे जलन भरी है..एक दूसरे की बुराइओं मे वक़्त और त्योहार मनाया जाता है...दोस्तों..मेरी बातो से किसी को बुरा लगा हो तो माफ़ी चाहती हु ...आप जो मर्ज़ी कीजिये बस मेरी गुज़ारिश है आप सब से कि कम से कमएक गरीब को भरपेट भोजन जरूर खिलाये...इतना काफी है इस समाज को ऊपर  उठाने के लिए...शुभ रात्रि दोस्तों..शुभ कामनाये ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...