कहानी तेरी लिख दे या अपनी लिख ले..फर्क बहुत नहीं शायद---बेबाक ज़िन्दगी की असलियत रख
दे सब के सामने या पन्नो मे ढाले,फर्क बहुत नहीं शायद---कुछ राहें अनकही कुछ जानी पहचानी सी
छोड़ दे इन को या कदम इस पे रख दे,कोई फर्क नहीं अब शायद---- टुकड़े टुकड़े इस ज़िन्दगी को जिए
या बिंदास इन साँसों को खुल के ज़ी ले....फर्क बहुत है अब शायद----
दे सब के सामने या पन्नो मे ढाले,फर्क बहुत नहीं शायद---कुछ राहें अनकही कुछ जानी पहचानी सी
छोड़ दे इन को या कदम इस पे रख दे,कोई फर्क नहीं अब शायद---- टुकड़े टुकड़े इस ज़िन्दगी को जिए
या बिंदास इन साँसों को खुल के ज़ी ले....फर्क बहुत है अब शायद----