Monday 9 October 2017

कहानी तेरी लिख दे या अपनी लिख ले..फर्क बहुत नहीं शायद---बेबाक ज़िन्दगी की असलियत रख

दे सब के सामने या पन्नो मे ढाले,फर्क बहुत नहीं शायद---कुछ राहें अनकही कुछ जानी पहचानी सी

छोड़ दे इन को या कदम इस पे रख दे,कोई फर्क नहीं अब शायद---- टुकड़े टुकड़े इस ज़िन्दगी को जिए

या बिंदास इन साँसों को खुल के ज़ी ले....फर्क बहुत है अब शायद----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...