Tuesday 10 October 2017

हज़ारो पर्दो मे छुपा लो खुद को बेशक,तेरे रूप की चांदनी फिर भी बिखर जाती है---सूरज करता है

सज़दा और चाँद....और चाँद तो बस तुझी को निहारा करता है---पाँव जहा जहा रख देती हो,फूल खुद

ही शाख से टूट कर तेरे कदमो मे बिखर जाते है---मेहँदी  हाथो मे सजाने के लिए,यह पत्ते खुद ब खुद

रंगत का नशा लिए तेरी हथेलियों पे मिटने चले आते है---जब रूप सवरता है तेरा,दीवाने तो खुद ही तेरी

और चले आते है----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...