Saturday, 14 October 2017

खुदा तो किसी इंसा मे फर्क नहीं करता....मुकम्मल बनाता है सभी को,इबादत का हक़ भी सब को देता है --यह तो इंसा है जो खुद को खुदा से जय्दा उम्दा मान लेता है....गुनाह की आड़ मे खुद को बेकसूर कहता है...ओह ...परवरदिगार मेरे .... रहम कर अपने इन बन्दों पे,दौलत और हवस की आग मे यह भूल जाता है कि आखिर जाना तो एक दिन तेरे ही पास है...दौलत के ढेर पे बैठ कर खुद को शहंशाह मानने लगता है...यहह अल्लाह...ना यहाँ कोई दोस्त है ना अपना कोई साथी है...तेरी दुनिया मे सिर्फ और सिर्फ धोखा है.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...