तूने जो दिया ज़िंदगी मुझे,वो क्यों मुझे रास नहीं आया....हर तरफ है धुआँ धुआँ,हर इंसान पाक साफ़
क्यों नहीं दिया...चाहतें है बहुत महगी,प्यार दुलार किसी को समझ क्यों नहीं आया....हर बात से बात
निकालने वाले,मन की अनमोल कथा को इन्हे पढ़ना क्यों नहीं आया...बूंद आंसू की क्या कहती है,दर्द
की परिभाषा इन की किताब मे शायद कभी कोई बयां कर ही नहीं पाया...कभी पत्थर,कभी दौलत तो
कभी बेजान सवालो का हिसाब खतम ना हो पाया..सच मे ज़िंदगी,यह सब मुझे बिलकुल रास नहीं आया...
क्यों नहीं दिया...चाहतें है बहुत महगी,प्यार दुलार किसी को समझ क्यों नहीं आया....हर बात से बात
निकालने वाले,मन की अनमोल कथा को इन्हे पढ़ना क्यों नहीं आया...बूंद आंसू की क्या कहती है,दर्द
की परिभाषा इन की किताब मे शायद कभी कोई बयां कर ही नहीं पाया...कभी पत्थर,कभी दौलत तो
कभी बेजान सवालो का हिसाब खतम ना हो पाया..सच मे ज़िंदगी,यह सब मुझे बिलकुल रास नहीं आया...