झील से गहरी आँखों मे डूबने के लिए....इजाजत क्यों मांग रहे हो---पलकों के इस शामियाने पे क्यों
जीवन भर..साथ चलने का वादा मांग रहे हो---यह ज़िस्म,यह ज़ान,सर से पाव तक महकती हुई वफ़ा
की पहचान ---जरुरी तो नहीं हर वादे पे लफ़्ज़ों की मोहर ही लगाए गे हम--कुछ अनकही बाते,कुछ
झुकी पलकों की सदाए,इशारा समझो---अब भी कहे गे यही..जानम इज़ाज़त क्यों मांग रहे हो---
जीवन भर..साथ चलने का वादा मांग रहे हो---यह ज़िस्म,यह ज़ान,सर से पाव तक महकती हुई वफ़ा
की पहचान ---जरुरी तो नहीं हर वादे पे लफ़्ज़ों की मोहर ही लगाए गे हम--कुछ अनकही बाते,कुछ
झुकी पलकों की सदाए,इशारा समझो---अब भी कहे गे यही..जानम इज़ाज़त क्यों मांग रहे हो---