वो हम पे ग़ज़ल लिखते रहे,और हम खुली आँखों से उन्हें निहारते रहे----वो मशगूल थे हमारी ही
मुहब्बत की दासताँ लिखने मे,और हम ज़ुल्फे बिखराय उन्ही पे मेहरबां होते रहे----कहे कैसे उन से
कि दिल धड़कता है बस उन के दीदार से,पर ख़ामोशी से अपने ही दिल की धड़कने सुनते रहे---ज़ुबाँ
चाहती है कि सब कह दे उन से,एक वो है जो पास बैठे हम को नहीं..हमारी तस्वीर को बस निहारते
रहे..निहारते रहे----
मुहब्बत की दासताँ लिखने मे,और हम ज़ुल्फे बिखराय उन्ही पे मेहरबां होते रहे----कहे कैसे उन से
कि दिल धड़कता है बस उन के दीदार से,पर ख़ामोशी से अपने ही दिल की धड़कने सुनते रहे---ज़ुबाँ
चाहती है कि सब कह दे उन से,एक वो है जो पास बैठे हम को नहीं..हमारी तस्वीर को बस निहारते
रहे..निहारते रहे----