Sunday 6 November 2016

वो हम पे ग़ज़ल लिखते रहे,और हम खुली आँखों से उन्हें निहारते रहे----वो मशगूल थे हमारी ही

मुहब्बत की दासताँ लिखने मे,और हम ज़ुल्फे बिखराय उन्ही पे मेहरबां होते रहे----कहे कैसे उन से

कि दिल धड़कता है बस उन के दीदार से,पर ख़ामोशी से अपने ही दिल की धड़कने सुनते रहे---ज़ुबाँ

चाहती है कि सब कह दे उन से,एक वो है जो पास बैठे हम को नहीं..हमारी तस्वीर को बस निहारते

रहे..निहारते रहे----

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...