वो बचपन के खिलोने,वो गुड़ियों का हसीं चेहरा....कही शतरंज की मोहरो पे,गुलामी का वो सहमा
टुकड़ा...टूटते खिलोनो की आवाज़ से आज भी डर लगता है....उन को फिर से पाने के लिए यह दिल
आज भी धड़कता है ....बिछाते नहीं उन शतरंज की मोहरो को आज भी उन राहो मे..जहा से निकलने
के लिए आवाज़ भी दे..तो डर लगता है........
टुकड़ा...टूटते खिलोनो की आवाज़ से आज भी डर लगता है....उन को फिर से पाने के लिए यह दिल
आज भी धड़कता है ....बिछाते नहीं उन शतरंज की मोहरो को आज भी उन राहो मे..जहा से निकलने
के लिए आवाज़ भी दे..तो डर लगता है........