Wednesday, 23 November 2016

वो बचपन के खिलोने,वो गुड़ियों का हसीं चेहरा....कही शतरंज की मोहरो पे,गुलामी का वो सहमा

टुकड़ा...टूटते खिलोनो की आवाज़ से आज भी डर लगता है....उन को फिर से पाने के लिए यह दिल

आज भी धड़कता है ....बिछाते नहीं उन शतरंज  की मोहरो को आज भी उन राहो मे..जहा से निकलने

के लिए आवाज़ भी दे..तो डर लगता है........

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...