Thursday, 17 November 2016

हर बात पे रोने के लिए,कोई वजह तलाश नहीं की मैंने---बस जो मिल गया,रहमते-करम मान कर

ज़ी लिया मैंने---बेवजह क्यों मुस्कुराते है ,आज यह राज़ भी जान लिया मैंने---मुकद्दर की लकीरो

 मे जो नाम नहीं लिखा मेरे,उसी को याद कर के बस जीना सीख़ लिया मैंने---ज़िन्दगी की जंग लड़ते

लड़ते,मौत को भी प्यार करना अब सीख़ लिया मैंने---

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...