ज़माना देता रहा हज़ारो ही ज़ख्म...देता रहा दर्द ही दर्द----कुछ अनकही कुछ अनसुनी...कुछ रह
गई इस सीने मे,किसी गहरे नासूर की पहचान बन कर----कभी रो लिए तन्हाई मे,कभी फूटे ज़ख़्म
रात के अंधेरे मे----ज़ी हल्का हुआ तो याद आया..यह सारी दुनिया तो बेमानी है---खुद ही खुद मे
मुस्कुरा दिए..ज़िन्दगी नाम है बस जीने का..यह सोच कर खुदा की इबादत मे झुक गए----
गई इस सीने मे,किसी गहरे नासूर की पहचान बन कर----कभी रो लिए तन्हाई मे,कभी फूटे ज़ख़्म
रात के अंधेरे मे----ज़ी हल्का हुआ तो याद आया..यह सारी दुनिया तो बेमानी है---खुद ही खुद मे
मुस्कुरा दिए..ज़िन्दगी नाम है बस जीने का..यह सोच कर खुदा की इबादत मे झुक गए----